Skip to main content

Posts

Showing posts with the label FASTING IN NAVRATRA

ऐसे भाव से किया गया उपवास होता है फलित

अष्टांग योग के पांच नियमों में से एक नियम है ‘तप’ अर्थात अपने शरीर को किसी रूप में स्वयं कष्ट देकर तपाना। यह एक बुनियादी शुद्धिकरण की प्रक्रिया है जोकि नकारात्मक कर्मों को काटने, हटाने में तथा आत्मिक उत्थान में सहायक होती है। उपवास भी स्वयं को तपाने का एक माध्यम है। यही कारण है कि शारीरिक तथा आत्मिक शुद्धि के लिए नवरात्रों के दौरान उपवास रखे जाते हैं। मां ‘शक्ति’ के दस रूप- शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रकान्ता, कुशमंदा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी, सिद्धिदात्री तथा अपराजिता, इन नौ रातों और दस दिनों में समाए हुए हैं। इस प्रकार प्रत्येक रात्रि की एक विशेष शक्ति है जिसका एक विशिष्ट प्रयोजन है।  नवरात्रों के दौरान मौसम परिवर्तित होता है अर्थात इस सृष्टि की विभिन्न शक्तियां असंतुलन से एक सामान्य स्थिति की ओर बढ़ती हैं। चूंकि हम इस सृष्टि के पूर्ण अंश हैं, हम भी इन नौ दिनों में एक संतुलन में आने लगते हैं। इस दौरान हमारी प्राण शक्ति एक पुनः निर्माण की प्रक्रिया से होकर गुजरती है जिसके लिए शरीर को हल्का रखा जाता है। शरीर के सम्पूर्ण विषहरण के लिए, इन दिनों में उपवास के अल...

असंतुलन से सामान्य स्थिति की ओर बढ़ने का समय

उपवास भी स्वयं को तपने का एक माध्यम है। यही कारण है की शरीर और आत्मा की शुद्धि के लिए नवरात्रो में उपवास किये जाते है।                                                       YOGI JI'S ARTICLE IN VIRAT VAIBHAV