सम्पूर्ण मानव जाति की उत्त्पत्ति का स्रोत एक ही है और सभी उसी एक में मिल जाएंगे अर्थात हमारा आदि और अंत एक ही है। हम सभी के देव और देवी भी एक ही हैं और कुछ पूजनीय जीव भी जैसे कि सर्प, गाय आदि। गाय और गौवंश में कुछ तो ऐसा है कि जिसने दुनिया की सभी संस्कृतियों में एक प्रतिष्ठित स्थान अर्जित किया है। वर्तमान समय में 'हौली काऊ' को भारतवर्ष से जोड़ा जाता है पर इतिहास के पन्नों से इस गोजातीय देवी की सर्व उपस्थिति का पता चलता है। मेसोपोटामिया के निवासी बैल को असाधारण शक्ति और जनन क्षमता का प्रतीक समझ औरोक्स के रूप में उसकी पूजा करते थे। बैल, बेबीलोन देवता एन्न, सिन और मर्दुक का भी चिन्ह था और गाय, देवी ईश्तर की। असीरियन देव निन का भी राज्य चिह्नन मानव - बैल के रूप में था। प्राचीन बेबीलोन निवासी तथा असीरियन लोगों ने अपने महलों (जिसमें देवताओं का आह्वान करने वाले शिलालेख रखे थे ) की रक्षा करने के लिए, विशाल पंखों वाले बैलों की प्रतिमाओं का निर्माण किया था। ईरानियों के पास भी उनके महलों की रक्षा के लिए भारी पंखों वाले बैल थे। सेमिटिक कानांइट्स के लिए भी बैल बाल का प्रतीक था...
Journey of the spirit 'Sanatan Kriya'