किसी भी अन्य वस्तु की तरह सृष्टि सुव्यवस्थित रूप से यथाक्रम है, वस्तुतः कुछ मौलिक नियमों पर आधारित है। जिसका किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कर्मो का नियम प्रधान होता है, यहां तक कि देव-देवियां जो क़ि इस सृष्टि को चलाते हैं, खुद भी इस नियम से बंधे हुए हैं। तथापि आधुनिक मनुष्य सृष्टि से ऊपर अपनी प्रधानता दर्शाता है और मूर्खतापूर्वक अपने लिए काल्पनिक संसार का निर्माण करने हेतु सृष्टि के नियमो क़ी उपेक्षा करता है, फलतः पतन के चक्र में फंस जाता है।भगवद गीता में भी कर्मों के नियमों की अचूक मान्यता का वर्णन है। सर्वोत्कृष्ट कथन 'आप जो बोएंगे, वही काटेंगे' कर्मों के नियम कि इस अवधारणा को साकार करता है। नरक की यात्रा से बचने के लिए जरूर करें ये दान प्रत्येक कार्य एवं कर्म आपको चाहे कितना भी तुच्छ प्रतीत हो परंतु उसका फल आपको जरूर मिलता है। चूंकि प्रत्येक कार्य का प्रारंभ एक विचार से होता है इसलिए ये आपकी विचार प्रक्रिया ही है जो एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से भेद कराती है। आपकी चिंतन प्रक्रिया या तो स्वार्थी होगी या निष्काम। निष्काम कर्म आपको सृष्टि की रक्षा एवं पालन क...
Journey of the spirit 'Sanatan Kriya'