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Video | What is the journey of the soul?

What is atma chintan? This word comprises of two words ‘Atma’ and ‘Chintan’. Atma is what you really are and not what you see yourself as- this would make no sense to a being of kaliyug(the present yug) All you think yourself to be only the physical form that you see and this is what the role of kaliyug is- to delude you (bhramit karna). Yogi ji explains the concept of yog, birth and demise Let us try and understand how kaliyug has its effect by going back in the history, in the times of Yayati itself. Yayati was the ancestor of the kauravas and pandavas. Even after enjoying the pleasures of bhu lok for 4,000 years (by exchanging his curse of old age with youth of his son Puru), he was not satisfied and could not believe that 4,000 years had passed. So, even a dharmatma and noble king like Yayati, could not go beyond the svah (swarg) lok. Shantanu was a descendant of Yayati. He wanted to marry Ganga but she put forth a condition that he must never question any of her ...

Dimensions beyond and below...

There are specific mantras to please the divine to access Swarga loka. Earth is only one level of existence, there are dimensions beyond and below. Everything in creation is either going up or it is going down, nothing is stationary. Presently we are living on earth, but if anyone thinks that he/she will continue to be here birth after birth is a mistaken notion. Like everything in Creation, a being too, moves up or down. Earth is only one level of existence, there are dimensions beyond and below. The dimension of earth or Bhuloka, is special in that, from here one can reach any dimension based on his/her desire and backed by requisite karmas. Bhuva is the loka higher than earth, reaching here is possible only through complete detachment. Next comes Swarga loka, which can be accessed through recommendations from gods and goddesses. There are specific mantras to please the divine to access Swarga loka. The loka above Swarga is called the Maha loka, it is t...

जानिए, जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति का साधन

सृष्टि की उत्पत्ति से पहले केवल एक अति सूक्ष्म सर्वव्याप्त चेतना थी। यह चेतना ‘आदि शक्ति’ के रूप में प्रकट हुई और उनके हिरण्यगर्भ से सभी कुछ उत्पन्न हुआ। इस सृष्टि के संचालन के लिए आदि-शक्ति ने स्वयं को ब्रह्मा, विष्णु और महेश के रूप में तथा इस संसार को मूर्त रूप देने के लिए "जड़ प्राण  (वायु, जल , आकाश, पृथ्वी और अग्नि) और चेतन प्राण के रूप में प्रकट किया। ब्रह्माजी ने इसकी संरचना का कार्य भार संभाला, विष्णुजी ने इसके पालन पोषण का और भगवान शिव ने इसके परिवर्तन का। यही ‘प्राण’ विभिन्न आवृतियों के परिकम्पन पर स्थित हो कर इस ब्रह्माण्ड के हर पदार्थ को भिन्न रूप प्रदान करते है। मनुष्य में यह प्राण, सूक्ष्म चक्रों के रूप में ऊर्जा केंद्र निर्मित करते है। प्रत्येक चक्र उस व्यक्ति विशेष की मानसिक, आर्थिक, शारीरिक और आध्यात्मिक स्तर का द्योतक है।  विष्णु की 'माया' शक्ति द्वारा ही सभी आत्माएं इस सृष्टि के कर्म चक्र से बंधी रहती हैं किन्तु जिन आत्माओं को इस भौतिक संसार की निरर्थकता का अनुभव हो जाता है, वह महादेव अर्धनारेश्वर की कृपा से इस सृष्टि के आवागमन से बाहर हो जाती...

धृतराष्ट्र को क्यों सहना पड़ा सौ पुत्रों के मारे जाने का दुख

अगर आपको लगता है की आप इस संसार में खाली हाथ आएं हैं और खाली हाथ ही जाएंगे तो जो आपके नकारात्मक कर्म हैं वे आपके अंतिम समय आने पर निष्प्रभावी हो जाएंगे तो आप बहुत बड़ी भूल कर रहे है। आप किसी योगी को ऐसे विचार व्यक्त करते हुए नहीं पाएंगे क्योंकि वे जानते हैं की वे कर्मो के साथ इस संसार में आए हैं और जब इस शरीर को छोड़ेंगे तब कर्म ही साथ जाएंगे किसी भी व्यक्ति के शरीर के भार में जब वह जीवित है और जब उसकी आत्मा शरीर छोड़ देती है ,एक अंतर होता है |  यह आत्मा का भार नहीं बल्कि कर्मो का भार होता है|  इसी आशय को समझने के लिए 1902 में डॉ. डंकन मैकडॉगल ने मेसचुसेट्स में छः मरते हुए रोगियों पर एक प्रयोग किया,जिसमे की उन्हें एक विशेष रूप से बने तराजू पर मृत्यु से पूर्व रखा गया|  उनकी मंशा यह सुनिश्चित करना थी की मृत्यु से पहले और बाद के भार के अंतर को मापा जाए। रोगियों का उनकी मृत्यु की निकटता के आधार पर चयन किया गया| जैसे ही रोगी की मृत्यु हुई अचानक से वजन में तीन चौथाई औंस की कमी दर्ज की गई| यद्यपि हर एक बात का ध्यान रखा गया था जैसे की फेफड़ो में हवा का दवाब क्या है या फिर शर...

ऐसे कार्य न करें अन्यथा नरक आपकी प्रतीक्षा कर रहा है

किसी भी अन्य वस्तु की तरह सृष्टि सुव्यवस्थित रूप से यथाक्रम है, वस्तुतः कुछ मौलिक नियमों पर आधारित है। जिसका किसी भी प्रकार से उल्लंघन नहीं किया जा सकता है। कर्मो का नियम प्रधान होता है, यहां तक कि देव-देवियां जो क़ि इस सृष्टि को चलाते हैं, खुद भी इस नियम से बंधे हुए हैं। तथापि आधुनिक मनुष्य सृष्टि से ऊपर अपनी प्रधानता दर्शाता है और मूर्खतापूर्वक अपने लिए काल्पनिक संसार का निर्माण करने हेतु सृष्टि के नियमो क़ी उपेक्षा करता है, फलतः पतन के चक्र में फंस जाता है।भगवद गीता में भी कर्मों के नियमों की अचूक मान्यता का वर्णन है। सर्वोत्कृष्ट कथन 'आप जो बोएंगे, वही काटेंगे' कर्मों के नियम कि इस अवधारणा को साकार करता है। नरक की यात्रा से बचने के लिए जरूर करें ये दान प्रत्येक कार्य एवं कर्म आपको चाहे कितना भी तुच्छ प्रतीत हो परंतु उसका फल आपको जरूर मिलता है। चूंकि प्रत्येक कार्य का प्रारंभ एक विचार से होता है इसलिए ये आपकी विचार प्रक्रिया ही है जो एक मनुष्य का दूसरे मनुष्य से भेद कराती है। आपकी चिंतन प्रक्रिया या तो स्वार्थी होगी या निष्काम। निष्काम कर्म आपको सृष्टि की रक्षा एवं पालन क...