सूर्य जब एक नक्षत्र मंडल से दूसरे नक्षत्र मंडल में प्रवेश करता है, तो उस संचलन को संस्कृत में संक्रान्ति कहते हैं। मकर संक्रान्ति से तातपर्य है मकर राशि में सूर्य का प्रवेश। सदियों से हमारे पूर्वज सृष्टि की बारीकियों से परिचित थे। उन्हें तारों और ग्रहों की गति, आकार, माप व् उनके स्थान आदि का सूक्ष्म ज्ञान था। उनके द्वारा,एक वर्ष में बारह संक्रांतियों का अवलोकन इस तथ्य का सबसे उपयुक्त उदाहरण है। वह इन ग्रहों और नक्षत्रों की शक्ति व् उनकी संक्रान्ति से होने वाले ऊर्जा पैटर्न के बदलाव तथा उससे सृष्टि में होने वाले प्रभावों से भली – भांति परिचित थे। सूर्य एक शक्ति है, जो विशेषकर पृथ्वी के प्राणियों के लिए अत्यधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि जीवन तो उन्हीं से संभव है। वह ज्ञान के देवता हैं। इसी कारण ऋषि – मुनि सूर्य का अनुसरण करते थे। उनमें सूर्य जैसा तेज़ दमकता था और वह सूर्य तुलनीय शक्तियों से ओत – प्रोत थे। गीता भी यही कहती है कि आप जिसका अनुसरण करते हैं, वैसे ही हो जाते हैं। उदाहरण के लिए, सूर्य साधक महर्षि विश्वामित्र ने गायत्री महामंत्र से एक समानांतर ब्रह्माण्ड की संरचना कर दी थ...
Journey of the spirit 'Sanatan Kriya'