जब पुरुष(आत्मा) प्रकृति(सृष्टि) के साथ-सत्त्व, राजस और तम- इन तीनों गुणों के रूप में जुड़ जाता है तब सृष्टि में एक जीव का जन्म होता है। प्रकाश, आनंद और ज्ञान यह सारे सत्त्व गुण के लक्षण होते हैं, इच्छाएं, आसक्ति और उससे जुड़े कर्म राजस गुण के लक्षण होते हैं और अंधकार, अज्ञान और निद्रा ये तम गुण के लक्षण होते हैं। मनुष्य में उसकी इच्छाओं और आत्मिक उन्नति के स्तर के आधार पर कम/अधिक मात्रा में ये तीनों गुण पाएं जाते हैं। आम लोग तम गुण के प्राबल्य के आधीन होते हैं, जो कि पशुओं और अन्य नीच योनि के जीवों में भी मुख्य रूप से पाया जाता है। भगवद गीता के अनुसार जब कोई इंसान अपना शरीर तम गुण के आधीन होकर छोड़ता है, तो उसका अगला जन्म पशुओं की योनियों में होता है और वह नर्कों में प्रवेश करता है। इसी कारण से तम गुण को कम कर हमें सत्त्व और राजस गुण की मात्रा खुद में बढ़ाने का प्रयास सन्तानक्रिया के द्वारा करना चाहिए। मनुष्य में जब राजस गुण का प्राबल्य होता है तो वह उत्साह से अपनी भौतिक इच्छाओं तथा आसक्तियों को पूरा करने के लिए कर्म करने हेतु प्रवृत्त होता है। हर कर्म से उसकी समान और वि...
Journey of the spirit 'Sanatan Kriya'