सृष्टि में कुछ भी स्थिर या स्थायी नहीं है, प्रतिपल या तो वह ऊपर की ओर जा रहा है या फिर नीचे की ओर। यदि सृष्टि के नियमों का पालन होता है तो विकास और उन्नति होती है और यदि उन्हीं नियमों की अवहेलना होती है तो पतन और विनाश। इस कलियुग में मनुष्य, आत्मिक पतन की ओर अग्रसर है। प्राकृत नियमों की अवहेलना हो रही है। सभी धर्म यह कहते हैं, कि, ‘देने में ही प्राप्ति है’ फिर भी,अभी तक कोई भी, ऐसा करने को तैयार नहीं। दुनिया के सभी धर्मों के महापुरुषों की जीवनी से पता चलता है कि उन्होंने स्वयं के लिए कभी कुछ भी एकत्रित नहीं किया था, बल्कि सम्पूर्ण सृष्टि के कल्याण और उत्थान के लिए निरंतर कार्य किए । आज, लोगों को उसी धर्म में विश्वास नहीं जिसे वह मानते हैं, वह तो केवल बढ़ रहे हैं . .. पतन और विनाश की ओर। प्रत्येक धर्म, नरक या जहन्नुम की बात करता है। नरक के द्वार उनके लिए खुलते हैं जो स्वार्थ के लिए जीते हैं, जो कोई भी अपराध या जुर्म होते हुए देखकर भी चुप खड़े रहते हैं। जब भी कोई किसी पशु या मानव को कष्ट में देखकर अपना मुँह फेर लेता है, उसे बचाने का कोई प्रयास नहीं करता, तो समझो उसने एक अपरा...
Journey of the spirit 'Sanatan Kriya'