कितने आश्चर्य की बात है कि आज के युवक-युवतियां कम उम्र में बालों के पकने का शिकार हो रहे हैं। अपनी त्वचा और बालों को चमक प्रदान करने के लिए कृत्रिम रसायनों से लैस सौंदर्य प्रसाधनों का सहारा ले रहे हैं। जबकि हमारे ऋषियों का न केवल शरीर सुडौल होता था अपितु अंतिम समय तक उनकी त्वचा आभा से भरपूर रहती थी। शरीर स्वस्थ रहता था। वे कभी वृद्ध होते ही नहीं थे। आखिर वे ऐसा क्या करते थे, जो बिल्कुल अलग था? क्या उन्हें सदैव यौवन बनाए रखने का कोई जादुई नुस्खा मिल गया था? सच तो यह था कि उन्होंने प्रकृति को चलाने वाले नियमों को समझ लिया था। यह हमारा सौभाग्य है कि वृद्धावस्था को रोकने वाले उनके ज्ञान का संग्रह सनातन क्रिया जैसी योग तकनीकों के रूप में हमें विरासत में मिला है। सनातन क्रिया का अभ्यास व्यक्ति को प्रकृति के साथ एक कर देता है।
सनातन क्रिया में 'सूर्य साधना' नामक एक सरल सी क्रिया का वर्णन है और ऐसा कहा जाता है कि जो 'सूर्य साधना' करता है वह सूर्य की भांति ही आभा युक्त हो जाता है। इस क्रिया में सूर्य के साथ सूक्ष्म रूप से संपर्क स्थापित किया जाता है लेकिन ऐसा करते समय सूर्य का रंग गुलाबी होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि उस समय सूर्य का रंग नारंगी न हो। यदि आप आरंभिक स्तर पर सूर्य का नारंगी रंग देखते हैं तो शरीर की कोशिका जल भी सकती है। जैसे जैसे हम 'सूर्य साधना' में आगे बढ़ते जाते हैं, सूर्य के उच्च रंगों से भी सूक्ष्म संपर्क बना सकते हैं। महाभारत में कर्ण सूर्य के सूक्ष्मतम रंगों से संपर्क स्थापित करता था। इसी कारण उसकी देह इतनी अधिक आभायुक्त थी। सूर्य साधना में सूर्य को देखते हुए जल अर्पण किया जाता है और ऐसा करते समय कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। जल अर्पण इस प्रकार से किया जाता है कि सूर्य की किरणें पानी में छनकर आपकी ओर आएंं। यह किरणें जानती हैं कि उन्हें कहां जाना है क्योंकि सूर्य की चेतना आपकी चेतना से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
-योगी अश्विनी
सनातन क्रिया में 'सूर्य साधना' नामक एक सरल सी क्रिया का वर्णन है और ऐसा कहा जाता है कि जो 'सूर्य साधना' करता है वह सूर्य की भांति ही आभा युक्त हो जाता है। इस क्रिया में सूर्य के साथ सूक्ष्म रूप से संपर्क स्थापित किया जाता है लेकिन ऐसा करते समय सूर्य का रंग गुलाबी होना चाहिए। इस बात का विशेष ध्यान रहे कि उस समय सूर्य का रंग नारंगी न हो। यदि आप आरंभिक स्तर पर सूर्य का नारंगी रंग देखते हैं तो शरीर की कोशिका जल भी सकती है। जैसे जैसे हम 'सूर्य साधना' में आगे बढ़ते जाते हैं, सूर्य के उच्च रंगों से भी सूक्ष्म संपर्क बना सकते हैं। महाभारत में कर्ण सूर्य के सूक्ष्मतम रंगों से संपर्क स्थापित करता था। इसी कारण उसकी देह इतनी अधिक आभायुक्त थी। सूर्य साधना में सूर्य को देखते हुए जल अर्पण किया जाता है और ऐसा करते समय कुछ विशेष मंत्रों का उच्चारण किया जाता है। जल अर्पण इस प्रकार से किया जाता है कि सूर्य की किरणें पानी में छनकर आपकी ओर आएंं। यह किरणें जानती हैं कि उन्हें कहां जाना है क्योंकि सूर्य की चेतना आपकी चेतना से कहीं अधिक श्रेष्ठ है।
-योगी अश्विनी
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