योग एक सम्पूर्ण विज्ञान है जो हजारों वर्ष पूर्व वैदिक ऋषियों ने गुरु-शिष्य परम्परा द्वारा हमें दिया हालाँकि आज के समय में मानव जीवन शैली में एक बड़ा परिवर्तन आया है किन्तु योग के नियम आज भी वही हैं।
तेजी से साँस लेना, उछल कूद करना, अपने शरीर को मोड़ना तोड़ना, यह सब योग नही है, योग तो स्वयं को जानने की एक सुंदर यात्रा है। इस यात्रा में साधना का लाभ तभी अनुभव किया जा सकता है जब योग को संपूर्णता से किया जाए। जैसे एक मरीज को डॉक्टर के नुस्खे से लाभ तभी होगा जब मरीज उसकी दवा संपूर्णता से ले, वैसे ही योग एक दिव्य नुस्खे के रूप में देखा जाना चाहिए, जिसमें व्यक्तिगत सुविधा के अनुसार परिवर्तन नहीं किया जा सकता। इसके अलावा योग क्रियाओं का लाभ पाने के लिए इनका अभ्यास नियमित रूप से करना अनिवार्य है क्योंकि आप किसी भी बीमारी का इलाज केवल डॉक्टर का नुस्खा पढ़कर नहीं कर सकते, आपको उसके द्वारा दी गई दवा लेनी ही होगी।
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योगी अश्वनी |
योग सीधे शब्दों में जीवन के सभी पहलुओं में तथा सभी पहलुओं के साथ जुड़ना है। इसके लिए दुनिया को त्याग, पहाड़ों पर जाने की कोई आवश्यकता नहीं है। योग साधक, परिवार और समाज के प्रति अपने सभी दायित्वों की पूर्ति करता हुआ, एक गृहस्त जीवन भी व्यतीत कर सकता है।
इस श्रृंखला में हम सनातन क्रिया की कुछ विशेष क्रियाओं पर चर्चा करेंगें, जो पूर्णतः अष्टांग योग पर आधारित हैं। इन क्रियाओं का अभ्यास ध्यान फाउंडेशन के साधक वर्षो से कर रहे हैं और विभिन्न स्तरों पर – शारीरिक, भावनात्मक, मानसिक और वित्तीय – लाभान्वित हुए हैं। जिन जिन ने भी इनका अभ्यास नियमित रूप से किया है उन सभी में सकारात्मक परिवर्तन देखा गया है और ये सभी समाज के जिम्मेदार पदों पर है, कुछ नौकरी करने वाले तो कुछ व्यवसाय और सभी अपने परिवारों की देखभाल भी कर रहे हैंl
सर्व प्रथम “एब्डोमिनल ब्रीथिंग” अथवा उदर श्वास से प्रारम्भ करते हैं
1. अपनी रीढ़ की हड्डी बिल्कुल सीधे कर एक स्वच्छ एवं हवादार स्थान पर बैठें।
2. अपनी आँखें बंद कर नाक से साँस लें, किसी भी समय अपने मुँह से साँस न लें।
3. अब अपना ध्यान अपने उदर स्थल पर ले जाएं। धीमें से साँस छोड़ते हुए अपने पेट को अंदर खींचें और बिना श्वास को रोके, धीरे धीरे साँस अंदर लेना शुरू करें जिस से आपका उदर बहार की ओर फूलेगा। एक बार जब आप अपने पेट की पूरी क्षमता से साँस भर लें , फिर से श्वास छोड़ना शुरू करें।
4. श्वास लेने की इस प्रक्रिया को कुछ समय तक जारी रखें, बिना किसी तनाव के । धीरे-धीरे सांस लेने की गति को धीमा और गहरा कर दें।
आज के तनावपूर्ण जीवन में हम सब तेज गति से साँस लेते हैं। शारीरिक, मानसिक तथा भावनात्मक तनाव से हमारे शरीर की चयापचय दर बढ़ती है। चयापचय, सीधे शब्दों में कहें तो वह दर है जिससे हमारे शरीर की कोशिकाओं द्वारा ऊर्जा की खपत की जाती है। इस लिए तनाव के कारण तेजी से कोशिकाओं का “बर्न आउट ” हो जाता है। यह सरल सी साँस प्रक्रिया आपके शरीर के चयापचय दर को कम कर देता है जिस से शरीर की कोशिकाओं की जीवन अवधि बढ़ जाती है, व्यक्ति का कार्य कौशल घटाए बिना।
अगले सप्ताह हम एक सरल प्राणायाम की चर्चा करेंगे, जिस से प्राकृतिक ढंग से आपकी चयापचय दर को आपकी जीवन शैली के अनुकूल किया जा सकता है।
लेख जन संगठन में प्रकाशित किया गया था।
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